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कविता

प्यार में धोखा खाई लड़की

लीना मल्होत्रा राव


प्यार में धोखा खाई किसी भी लड़की की
एक ही उम्र होती है,
उलटे पाँव चलने की उम्र
वह
दर्द को
उन के गोले की तरह लपेटती है,
और उससे एक ऐसा स्वेटर बुनना चाहती है
जिससे
धोखे की सिहरन को
रोका जा सके मन तक पहुँचने से

वह
धोखे को धोखा
दर्द को दर्द
और
दुनिया को दुनिया
मानने से इनकार करती है
और मुस्कुराती है

उसे लगता है
कि
सरहद के पार खड़े उस बर्फ के पहाड़ को
वह अपनी उँगलियों
सिर्फ अपनी उँगलियों की गर्मी से
पिघला सकती है
फिर उँगलियाँ पिघल जाती हैं
देह दिल फिर आत्मा
और सर्द पहाड़ यूँ ही खड़ा रहता है

वह
रात के दो बजे नहाती है
और खड़ी रहती है
बालकनी में सुबह होने तक,
किसी को कुछ पता नहीं लगता
सिवाय उस ग्वाले के
जो रोज सुबह चार बजे अपनी साइकिल पर निकलता है !

उसका
दृश्य से नाता टूटने लगता है
अब वह चीजें देखती है पर कुछ नहीं देखती
शब्द भाषा नहीं ध्वनि मात्र हैं
अब वह चीजें सुनती है पर कुछ नहीं सुनती

पर कोई नहीं जानता...

शायद ग्वाला जानता है
शायद रिक्शावाला जानता है
जिसकी रिक्शा में वह
बेमतलब घूमी थी पूरा दिन और कहीं नहीं गई थी

शायद माँ जानती है
कि उसके पास एक गाँठ है
जिसमें धोखा बँधा रखा है

प्यार में धोखा खाई लड़की
शीशा नहीं देखती
सपने भी नहीं

वह डरती है शीशे में दिखने वाली लड़के से,
उसे दोनों की मुस्कराहट से नफरत है

वह नफरत करती है
अपने भविष्य से
उन सब आम बातों से
जो
किसी एक के साथ बाँटने से विशेष हो जाती हैं

प्यार में धोखा खाई लड़की का भविष्य
होता भी क्या है
अतीत के थैले में पड़ा एक खोटा सिक्का
जिसे
वह
अपनी मर्जी से नहीं
वहाँ खर्च करती है
जहाँ वह चल जाए


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